सन्नाटों से दोस्ती
सन्नाटों से दोस्ती
जिंदगी में एक हमसफ़र मिला
तो जिंदगी आफताब हो गई
कोई अपना सा मिला
तो जिंदगी से उम्मीदें बेहिसाब हो गई।
महक उठा था दिल का आंगन
गुलशन में खिलने लगे थे फूल
खूबसूरत ख्वाबों की एक दुनिया बनाई
हर ग़म गया था भूल।
पर नसीब का खेल
वफ़ा की थी जिससे उम्मीद
वो बेवफाई कर गई
हमने तो की सच्ची मोहब्बत
फिर क्यों वो इश्क की रुसवाई कर गई।
मुड़कर न देखा एक बार
जैसे कभी पहचान थी ही नहीं हमारी
मजाक उड़ाया जज्बातों का
जब आई वफ़ा निभाने की बारी।
दिल पे देकर ज़ख्म का तोहफ़ा
जीस्त-ए-सफ़र में अकेला छोड़ गई
जिसे माना था हमने अपना खुदा
वही तन्हाइयों की क़फ़स दे गई।
टूट कर बिखर गया मैं ऐसा
कि अब किसी पर ऐतबार ना रहा
सन्नाटों से कर ली है दोस्ती
अब दुनिया से कोई सरोकार ना रहा।
धोखा दिया फिर भी क्यों
अश्क बहते हैं आज भी उसकी जुदाई में
किस जुर्म की सजा है
खुद ही अपने जख्मों को कुरेदता हूं
मैं उसकी बेवफाई में।।