चाँद , गरीब का
चाँद , गरीब का
गरीब
बड़ी हसरत से देखता है
आसमान और जमीन के चाँद को
जी साहिब
किसी गरीब के थाली की रोटी
और आसमान का चाँद
अजीब मेल है दोनों का
जैसे रोज ही
घटता है बढ़ता है
उस आसमान का चाँद
ठीक वैसे
रोज ही
घटती और बढ़ती है
किसी गरीब के थाली की रोटी
और हाँ
कभी-कभी तो
ये बिलकुल गायब ही हो जाती है
गरीब की थाली से
ठीक वैसे ही
जैसे कभी-कभी गायब हो जाता है
वो आसमान का चाँद।
