गज़ल
गज़ल
अपनी पलकों को उठा के ना गिराया करिये
दिल के बीमार को पागल ना बनाया करिये
देख के आपको जलता है ये आईना भी
अपना चेहरा इसे हरदम ना दिखाया करिये
डूबा रहता हूँ खयालों में आपके हरदम
याद में अपनी हमें भी तो बुलाया करिये
मन के आँगन में हमारे है छाँव चाहत की
शिद्दते ग़म की घनी धूप में आया करिये
खिल के बिखरेगी वफाओं की पाक लौ हर सू
एक शम्मा तो मुहब्बत की जलाया करिये
आइये सुनिये सुनाईये दास्तां अपनी
घर के दरवाजे पे दस्तक तो लगाया करिये !