एक रचना
एक रचना
बनाए कोठियाँ, मकां, आरामगाह कई ।
मगर मुझे कभी कहीं नहीं आराम मिला ।।
मैं हूँ मजदूर , बनाए कई मंदिर - मस्जिद ।
नहीं उनमें मिला खुदा कहीं , ना राम मिला ।।
हुए बे - आबरू , रुसवा हुए जाकर के वहाँ ।
तेरे कूचे में बहुत खूब इंतजाम मिला ।।
दर्द, आँसू , जुदाइयाँ और इंतजार फकत ।
इश्क वालों का हमेशा यही अंजाम मिला ।।
हो के बर्बाद , अब फिरे है वो मारा - मारा ।
दिल लगाने का था मिलना यही इनाम , मिला ।।
साथ लेकर सुकून आई आज है मुर्दन ।
मुद्दतों बाद मिरे दर्द को आराम मिला ।।