जल ही जीवन है?
जल ही जीवन है?
ना फेर मुँह भाई,
यह तेरा ही क़हर है।
आज जल यहाँ जो,
बन गया ज़हर है।।
कल कल करती धारा को
तूने रोक दिया शहर में।
और ढूंढ रहा घाट पर
गंगाजल को ज़हर में।।
रोती है माँ प्रकृति यहाँ
देख तेरे प्रतिरोध को।
तू ना समझ बलवान खुद को
तू क्या झेलेगा उसके क्रोध को।।
भविष्य कुछ नहीं है अब
तेरे हर कदम का असर होगा।
सोच ले फिर एक बार वरना,
जल जीवन नहीं, ज़हर होगा।।
