Poonam Rathore

Tragedy

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Poonam Rathore

Tragedy

अब मैं करूँ स्वयं का तर्पण

अब मैं करूँ स्वयं का तर्पण

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अब ग्लानि मेरी साधना है,पश्चाताप तर्पण मेरा,

शुद्ध मेरी भावना है, विलय हुआ विसर्जन मेरा !


आशा मेरी व्यंजना, आशा,निराशा मौन मेरी,

उन्मुक्त मेरे प्रश्न, उत्तर सरल सहज विचार मेरा !


मेरे ह्रदय की भाषा जो समझ पाओ समझ लो,

मैं स्वयं अपने लिये कुछ न बोलूँगी सोच लो !


महफिलों में थी कभी, एकांत में आज पूर्ण हूँ,

तेज़ बतास में दीप प्राणों का जला अब तृण हूँ !


भीड़ भरी सड़कें शहर की कभी अच्छी लगी,

आज गाँव की पगडंडियां अपनी सगी लगती हैं! 


नीरव एकांत भी मुझे रास अब आने लगा है,

फिर जगत के इन प्रपंचों में न पड़कर प्रसन्न हूँ !


दाह, कुंठा, वेदना मेरी प्रकृति ही बन चुकी थी,

कालचक्र कुछ ऐसा चला कि खुद से ठन गई थी !


कल्पनाओं के भवन, जो थे हृदय में मैंने बनाये,

उनके यूँ टूट जाने पर कितना शोक मनाएं! 


कभी वाचालता मेरी अनुचरी बनकर रही थी,

कर गई उद्वेलित मन को,वो कथा मैंने कही थी !


जो सुख शान्ति देती रही वाकगंगा सबको,

वह हमारे हृदयरूपी हिमालय से तो बही थी !


कड़ुवाहट हृदय की शब्दों में ज़ब लगी भरने,

तब मध्यपान को तिलांजलि दे ही दिया हमने !


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