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V. Aaradhyaa

Tragedy

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V. Aaradhyaa

Tragedy

दो घर की हो कर भी पराई,

दो घर की हो कर भी पराई,

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मैं तेरे सिर की पगड़ी का 

सम्मान बढ़ाऊंगी,

तेरे ही तो आंगन की गुड़िया,

हर हाल मैं फर्ज निभाऊंगी।


तेरे सी तो साये की परछाईं,

कभी नहीं करना मुझे पराई,

कुछ न मांगूँ तुझ से बाबुल,

भूखे पेट ही मैं सो जाऊंगी।


हाथ जोड़ करूं आराधना,

गर्भ के अंदर हमें न मारना,

तुम्हारे कुल की मैं मर्यादा,

मिट्टी में कभी न मिलाऊंगी।


बाप को होती प्यारी बेटियां,

नेह की भूखी बेचारी बेटियां,

चुपचाप सबकुछ सह लूंगी, 

जरा भी नहीं मैं घबराऊंगी।

.

जब बेटे तेरे हो जाएंगे न्यारे,

छोड़ जाएंगे तुम्हें तेरे सहारे,

संपत्ति में भी न मांगूँ हिस्सा,

तेरे गम बांटने चली आऊंगी।


 क्या है रीत बनाई,

दो घर की हो कर भी पराई,

कोई तो हमें मान लो अपना,

हर बंधन में मैं बंध जाऊंगी।



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