STORYMIRROR

Minal Aggarwal

Tragedy

4  

Minal Aggarwal

Tragedy

यह दीपक बुझना नहीं था

यह दीपक बुझना नहीं था

1 min
293

यह दीपक 

बुझना नहीं था 

लेकिन इसे बुझा दिया 

गया 

बंद कमरे से 

इसे निकालकर 

आंगन में ले जाकर 

हवाओं के थपेड़ों में,

बारिश के पानी में 

रखकर 

धूप में तपाकर 

सर्दी में जमाकर 

बारिश में गलाकर 

पैरो से ठोकर लगाकर 

इसे गिरा दिया 

आंसुओं की धार,

सांसों की तार पर इसके 

अपना पैर रखा और 

अपने हाथों से इसका 

गला दबा दिया 

इसके बुझते ही 

इसे कूड़े करकट सा

मिट्टी के गड्ढे में 

दबा दिया 

इसको अपने रास्ते से 

हटाकर 

एक नया दीपक 

अपने घर में लाकर फिर 

अपने तरीके से उसमें 

तेल भरा 

अपने घर को 

जगमगाती रोशनी से भरा 

जिस घर के कमरे में 

जलता था 

वह दीपक 

उजाला करता था 

अब जो वहां अंधेरा 

बसता है और 

उसका साया रहता है 

उसका भी 

एक पल को 

ख्याल न किया 

दूसरों के दिलों में 

अंधेरे भरकर 

अपने दिल में रोशनी 

भरने का यह 

प्रयास 

देखते हैं 

कब तक विफल नहीं होता 

है 

यह पाप

आज के कलयुग में 

पुण्य में 

कैसे बदलता है 

बदलता है या नहीं 

देखते हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy