यह दीपक बुझना नहीं था
यह दीपक बुझना नहीं था
यह दीपक
बुझना नहीं था
लेकिन इसे बुझा दिया
गया
बंद कमरे से
इसे निकालकर
आंगन में ले जाकर
हवाओं के थपेड़ों में,
बारिश के पानी में
रखकर
धूप में तपाकर
सर्दी में जमाकर
बारिश में गलाकर
पैरो से ठोकर लगाकर
इसे गिरा दिया
आंसुओं की धार,
सांसों की तार पर इसके
अपना पैर रखा और
अपने हाथों से इसका
गला दबा दिया
इसके बुझते ही
इसे कूड़े करकट सा
मिट्टी के गड्ढे में
दबा दिया
इसको अपने रास्ते से
हटाकर
एक नया दीपक
अपने घर में लाकर फिर
अपने तरीके से उसमें
तेल भरा
अपने घर को
जगमगाती रोशनी से भरा
जिस घर के कमरे में
जलता था
वह दीपक
उजाला करता था
अब जो वहां अंधेरा
बसता है और
उसका साया रहता है
उसका भी
एक पल को
ख्याल न किया
दूसरों के दिलों में
अंधेरे भरकर
अपने दिल में रोशनी
भरने का यह
प्रयास
देखते हैं
कब तक विफल नहीं होता
है
यह पाप
आज के कलयुग में
पुण्य में
कैसे बदलता है
बदलता है या नहीं
देखते हैं।