मेरे ख़्याल से...
मेरे ख़्याल से...
मेरे ख़्याल से...
तुम एक ख़्याल ही बेहतर थे...
झूठ में लिपटे जवाब...
तुम एक सवाल ही बेहतर थे...
तुम्हारा हांथ...
हमारा साथ...
और एक सफ़र...
तुम्हारे साथ चलकर,
लगता था जैसे हो गया
मुकम्मल मेरी दुआओं का असर
रह कर दिल में, जो ना बन सके अपने
तुम एक अनजान ही बेहतर थे...
मेरी जिंदगी के तन्हा पल...
हमारे, साथ गुज़रे वक़्त से बेहतर थे...
कदम दर कदम...
पहर दर पहर...
ताना बाना बुना जिस रिश्ते का...
हुआ चूर कुछ इस तरह से,
जैसे कायनात ने बरसा दिए हो
मुझ पर अपने सारे कहर
तुम्हें हासिल ना कर सकने के जो होते
वो मलाल भी बेहतर थे...
मेरे ख़्याल से...
तुम एक ख़्याल ही बेहतर थे...