स्वीकार है मुझे
स्वीकार है मुझे
तू रहता है मुझमें कुछ इस तरह
कि मुझमें मैं रहा ही नहीं हूँ
लबों पर हर लफ्ज़ तेरे नाम से
सांसें बेपनाह तेरी खुशबू लिए हैं
कितनी ही तो कोशिश की है
तेरी यादों से ज़मानत की
मगर सच तो दरअसल ये है कि
मेरी आवारगी तेरे दर पर मुलाज़िम है
प्यासे की प्यास को जैसे उठी हो दुआ
तू हासिल मुझे खुदा की 'नज़र' थी
मैं गंवार न समझ सका कभी अहलियत तेरी
तभी तो सोता रहा हूँ आज तक लेकर आँखें भरी
मैं रच भी दूँ नयी नदियां तेरी विरह में
क्या ये कीमत मुनासिब होगी तुझे पाने को
तू लिखा जा चुका है मेरी लकीरों में दर्द सा
या अब भी बाकी है कहीं मेरे अंधेरो में रौशनी
मेरे 'ख़्याल' बेलगाम तेरे ख्वाबों में आज भी हैं
उम्मीदों के समंदर में गुमशुदा ये तैराक आज भी हैं
आज भी चाँद मेरा लिए चांदनी तेरी तलाश में है
अधूरी ही सही मगर तू मेरी मोहब्बत आज भी है।