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Yuvraj Gupta

Romance Tragedy Classics

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Yuvraj Gupta

Romance Tragedy Classics

ज़हर

ज़हर

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उतरने देता हूँ सीने में हर रात 

ज़हर उन बीते लम्हों की यादों का 

कि जिनमें सुकून तुम्हारे साथ 

गुज़रे पलों का भी है 

कि जो याद दिलाता है 


एहसास तुम्हारी छुअन का 

जो होता था मरहम मेरे उन घावों पर 

जिन्हें आँखें कभी देख नहीं सकती थीं ।


उतरने देता हूँ सीने में हर रात 

ज़हर उन बीते लम्हों की यादों का 

कि जिनमें शामिल 

तुम्हारे लबों की वो हंसी भी है


कि जो अजीज थी मुझको

मेरी सांसों से भी ज्यादा 

कि सोचता था अक्सर देख आंखें तुम्हारी 

कि कितने गहरे उतर चुके थे हम 

अपन

ी मोहब्बत के समंदर में ।


उतरने देता हूँ सीने में हर रात 

ज़हर उन बीते लम्हों की यादों का 

कि जिनमें खनकती गूंज 

हमारे किए वादों की भी है 


कि जो जिंदा है मुझमें बनकर सांसें 

नहीं देती है बिखरने मुझको

कि कहीं मैं भी तेरी तरह 

अनसुनी कर धुन धड़कनों की

शोर में दुनिया के गुम ना हो जाऊं।


और उतरने देता हूं सीने में हर रात

ज़हर उन बीते लम्हों की यादों का

क्यूंकि,

यह ज़हर इस बात का गवाह भी है

कि मुद्दतों कामिल जो दुआ होती है

उसकी कीमत बेहिसाब

और जो ना कर सके अदा तो 

सज़ा भी लाजवाब होती है।


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