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Yuvraj Gupta

Tragedy

4  

Yuvraj Gupta

Tragedy

दर्द

दर्द

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ख़्वाब हैं... मगर बेचैन है सांसें 

कुछ खयाल हैं जो बेसाज़ हैं 

तुम गए हो जो तोहफ़ा तन्हाई दे कर

बोझ से हैं लम्हें उम्र ये काटें कैसे


बहुत चुभती हैं ये सर्द रातें 

वही रातें कभी जिनकी कहानी

सिलवटें चादर की सुबह बताती थीं 

सी लिएं हैं जो लब अब तक ना खोले 


खंजर यादों का रोज उतरता है 

सीने में लिए तेरी तस्वीरें 

मैं ही ग़लत था ग़लत थी हर बात मेरी 

इस एहसास को तुम्हें जताऊं कैसे 


नहीं लगता उबर पाऊंगा कभी तुमसे

ज़िदंगी का हिस्सा नहीं ज़िदंगी हो तुम

बेचैनी जो पाई है मैंने हकदार हूं इसका

बोल नहीं पाया न जो कहना था तुमसे 


बहुत अंधेरा है यहां कुछ दिखता नहीं 

डर लगता है मुझे खो जाने से

अब और दर्द की जगह भीतर है नहीं 

डर लगता है नई यादें बनाने से।


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