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Yuvraj Gupta

Drama Romance Tragedy

4  

Yuvraj Gupta

Drama Romance Tragedy

काश...

काश...

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काश... चुरा सकता तुझे किस्मत से 

तो अपनी बांहों में छुपाकर रख लेता 

बन कर तेरे सिर का दामन 

तुझे हर नज़र से ढक लेता 


काश... के अपना साथ उम्र भर का होता 

हर शाम जब मैं घर आता 

तेरी उँगलियाँ मेरे बालों को सहलातीं 

मैं अपनी थकावट को तुझमें चूर कर लेता 


वीकेंड्स पर तू बाँध अपने पल्लू को कमर से 

सुबह से ही किचन में लग जाती 

तू पका लेती खाना और 

मैं खाने के बाद बर्तन धुल लेता 


काश... के तेरी चहक को मैं 

अपने घर की पहचान कर लेता 

तू बन जाती बेटी मेरे घर की 

और मैं तेरे अपनों की ढाल बन लेता 


होता एक छोटा सा आशियाना अपना 

आशियाने में शोर बस खुशियों का होता 

बे-लफ्ज़ ही पढ़ते रहते एक-दूसरे के चेहरे 

नज़र हटाना चेहरे से हमें नाग़वारा होता 


बीत जाती उम्र एक-दूसरे की निगाह में 

तू ताज मेरे सिर का मैं तेरा गुमान होता 

तेरी एक हंसी पर क़ुर्बान 

मेरा सारा जहान होता 


हर सजदे में खुदा के 

मैंने सिर्फ तुझे माँगा है 

तू फूल है किसी और के आँगन का 

तेरी खुशबू को हरदम अपना माना है 

चाहूँ भी तो इलज़ाम किस पर लगाऊं 

तू पास होती मेरे... गर उस दिन 

पहले दो कदम मैं बढ़ लेता... 


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