अद्भुत मनोभाव
अद्भुत मनोभाव
अक्सर ज़िन्दगी का अर्थ तलाशने
उतर जाती थी मन की गहराइयों में
बेबस जुबां खामोश हो जाती है जब
रंग शीत से गहरे नज़र आने लगते थे
गहन सोच में डूब जाता है बेकल मन
जड़ सा ठिठक जाता था उन्मादी तन
मनोहर प्रकृति उकेरती अद्भुत मनोभाव
संचित करती अतिरेक सुख दुःख के हाव
कैसे अपनी तमाम उम्र यूँ गुज़र गयी
तमाम झंझावातों की बागडोर संभाले
उभरे जज़्बात भी वहाँ...जहाँ सिर्फ
था तो नकाबपोश मतलब परस्त प्रेम
जहाँ झुकी पलकों के सायों तले और
बेमन सी मुस्कान पर लोग रीझ जाते
वहाँ इस मौन...मन के कोलाहल को
कब, कैसे, क्यों, कौन ही सुन सकता था
बहुत कोशिश रही थी अपनी...कि
मुस्कान में छुपी खामोशी पढ़ ले कोई
उस वक़्त अक्सर उमड़ती भीड़ में भी
खुद को हम पूरी तरह अकेला पाते थे।।