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Yuvraj Gupta

Romance Tragedy

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Yuvraj Gupta

Romance Tragedy

इंतज़ार

इंतज़ार

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तू चला गया दामन

किसी अजनबी का थाम के,

मैं बन गया अजनबी

खुद अपने ही मकान में 

कहते हैं लोग कि,

जिदंगी तो अभी बाकी है

ना जाने क्यूं रह गईं सांसें...

मुझ तन्हा बेजान में 

यादों का शायद,

कोई ईमान नहीं होता

चल सकें तो चलीं भी जाएं...

यें मुर्दों के साथ शमशान में

ना उम्मीदी के जिस मोड़ पर,

छोड़ गए हो तुम

आह तक ना आयी मुझसे मानो...

कब्र सी बन गई हो, लफ़्ज़ों की ज़ुबान में

इश्क़ से शिकवा

ये हरक़त जायज़ ना होगी

बहतर है इससे कि,

मैं ख़ामोश ही रहूं 

कभी तो वक़्त मेरा भी होगा,

कभी तो मुक्ति मुझे भी मिलेगी,

तब ना कोई शिकवा, ना कोई गिला होगा

बस मैं और मेरी तनहाई होगी अपने मुकाम पे.


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