इस घर के बाग के पेड़ पौधों से ही
इस घर के बाग के पेड़ पौधों से ही
इस
घर में
रह रहे लोग भी
इस घर के
बाग के
पेड़ पौधों से ही
बन गये हैं
जिन्हें न पानी दिया
जाता है
न इन्हें खाद
न इनकी छंटाई
होती है
न ही इनकी
कैसी भी कोई देखभाल
यह तो बंद कमरों में
रहते हैं
जिन्हें हवा का एक झोंका भी
मयस्सर नहीं
यह तो खामोशी को ही
अपना साज बनाकर
खाते पीते
हंसते खिलखिलाते
खेलते खालते
कूदते फांदते
गाते बजाते
नाचते थिरकते
जीते हैं
नहीं तो
इनकी खैर नहीं
इन्हें तो कुल्हाड़ी से भी
काटने की
जरूरत नहीं
यह तो बुरे बर्ताव से ही
तड़प तड़पकर
किसी रोज
मर जायेंगे
बहारों की राह देखते
दिल पर लेकर
पतझड़ का बोझ
गिरते पत्तों के संग ही टूटकर
पत्ता पत्ता
सूखकर
इधर उधर बिखर जायेंगे
इनके शरीर का भार होगा
इतना हल्का कि
इस घर के बाग की मिट्टी में ही
दब जायेंगे
जीवन से मुक्ति पाकर भी
बंद कमरों की घुटन और
अंधकारमय वातावरण से
बाहर निकलकर भी
हवाओं संग उड़ नहीं
पायेंगे।