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Kusum Lakhera

Tragedy

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Kusum Lakhera

Tragedy

सुबह के सपने

सुबह के सपने

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माँ कहती थी !

सुबह का सपना !!

सच होता है .....

पर सुबह सुबह !!

तक कहाँ सो पाती थी..

नींद सुबह ही टूट जाती थी ..

मुँह अंधेरे ही जाग जाती थी !!

बड़े परिवार में ...

बड़ी बहुएं ...

बड़ी बेटी ...

कहाँ देखती है सुबह का सपना !!

चिड़ियों के उठने से पहले उठना !!

पड़ता है ...

उजाले के आने से पहले ही घर

को समेटना पड़ता है ....

गाँव में ..देहात में ..

घर में ..सुबह की नींद ...

को करना पड़ता है बलिदान !!

क्योंकि घर भी मानो आवाज़

लगाता है सुनो उठ जाओ ..

ज़रा घर को समेटे ...ये बिखरे

घर को सजाओ ...चुल्हे को

मिट्टी से लीप लो ..और जो 

पशु उठ गए हैं ...उन्हें चारा

पानी दे आओ ...वह पंछी जो

बाट जोह रहे होंगे ...उन्हें दाना

दे के आओ ...

सच सुबह के स्वप्न ...वह देख ही 

नहीं पाती पूरे ....

अक्सर रह जाते अधूरे ...

कभी कभी नींद टूटती नहीं तो

वह सुबह के सपने में भी ..

काम में व्यस्त अपने को पाती है !

और इसी कशमकश में वह झट से

उठ जाती है !!



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