ढलता सूरज नारंगी सा
ढलता सूरज नारंगी सा


प्रातः का सूरज स्नेहसिक्त किरणों सम
आँखों को भाता है ..
नवीन आशा के अनगिनत सन्देश मानो
चहुँ दिशाओं से लाता है !
दिवस का सूर्य क्रोध की चिंगारी जैसे !
अग्नि लपटों से धरा को दहकता है ...
साँझ का ढलता दिनकर नारंगी सा !
नजर आता है ..
ढलती उम्र में भी मानो अनुभव का खजाना...
लुटाता है।
जीवन की तीन अवस्थाओं से मानव का परिचय
करवाता है।
उदित भास्कर से तो सब अपना नाता जोड़ना चाहते हैं
पर अस्ताचल रवि से क्यों अपना रिश्ता तोड़ना चाहते हैं
आख़िर जीवन के फ़लसफ़े को मानव ...
क्यों न समझ पाता है ?
कि उदय और अस्त होना प्रकृति की महत्वपूर्ण भूमिका है !
और इस भूमिका को सूर्य अपनी लगन से !!सौ ..प्रतिशत ...निभाता है !