अवसाद पर प्रहार कर
अवसाद पर प्रहार कर


मन की परतों पर अवसाद की धूल जो जमी है
उस पर प्रहार कर ...
मन जो निराशा में हो रहा बीमार उस मन की,
निराशा का संहार कर !
हो सके तो भौतिक सुविधाओं की चकाचौंध को,
छोड़ कर..... कोमल मन से तू प्यार कर !
अपने दुःख को न तू ...राई सा पहाड़ कर !
अपने दुःख की बेल को न तू ..झंखाड़ कर !!
अपने मन के दुःख को तू ...बाहर करके..
संघर्ष के लिए मन को तू... तैयार कर !
अवसाद मन को ..कमज़ोर करता ..
इस युक्ति को ...स्वीकार कर !
मन के जीते जीत है और मन के हारे हार है !
इस वाक्य में छिपे सत्य को तू..आत्मसात कर !
मन की आंखों में स्वप्न पले मन की आँखों में ,
स्वप्न चले...
मन की आँखों का तू स्वप्न से श्रृंगार कर !
उदासी की चादर छोड़ कर , निराशा से मुंह ..
मोड़ कर ..
जीवन
की चुनौतियों से सामना करने के लिए
स्वयं को तू तैयार कर !
माना कि मन संघर्ष की राह के लिए नहीं अभी तैयार है !
माना कि डर और मुश्किलों से जीवन लग रहा भार है
फिर भी एक क्षण ही सही सोच लेना कि तुम नहीं
सिर्फ़ एक छोटी सी इकाई , तुम नहीं अकेले मेरे भाई
बहुत से लोग हैं तुम्हारे संगी , तुम्हारे साथ ..
समझ लेंगे वे तुम्हारे सभी मनोभाव एवं जज़्बात
धूल धूसरित जिंदगी के पार भी है जिंदगी जिसे कहते
हैं हम सब परिवार है ..
ये परिवार ही तुम्हारे अवसाद को दूर करने का एक
प्यारा सा हथियार है !
तुम्हारे भीतर की संवेदना को जगाने हेतु जिनके मन
में आशीर्वाद और प्यार है !!
धूल धूसरित तनाव को अपने जीवन से चलो घटाएँ !
परिवार की एकता से हम अपने भीतर नवऊर्जा पाएँ !