मनोवांछित
मनोवांछित


कब किसको मिल पाया है
मन के अनुकूल ..
मन का हुआ तो अच्छा हुआ !
स्वप्न जिंदगी का सच्चा हुआ !!
पर यथार्थ के धरातल पर ..
कुछ ही लोग होते हैं ऐसे जो
शायद ...राजयोग ..
लिखवा क़े आते हैं !
धनलक्ष्मी सोने की क़लम से लिखती है..
उनका भाग्य ..जो सौभाग्य को जन्म से ,
ही लेकर आते साथ ..
चाँदी के चम्मच से बचपन से ही खेलते हैं !
सुख सुविधा के मखमली गलीचों पर रखते पाँव !
ऐश्वर्य के सभी साधनों की होती है छाँव !
क्या ऐसे सम्पन्न लोग ही तो मनोवांछित पाते हैं ?
पर इनसे नहीं होती क्रांति ..
न कोई परिवर्तन न कोई बदलाव
क्योंकि साधनों की बहुलता इंसान को स्वार्थी मे
ं
बदल देती है !
या अति दार्शनिक व संत में परिवर्तित कर देती है !
क्योंकि अति किसी भी चीज़ की सही नहीं होती !
अति धन , अति यश , अति शक्ति अति रूप अति ,
ज्ञान का चरमोत्कर्ष सुख या आनन्द की पराकाष्ठा
नहीं होती !
अति सुख ...सिदार्थ को कहाँ रास आया !
महल त्यागा ..परिवार त्यागा , बौद्ध धर्म को गले लगाया !
अति रक्तपात के कारण महान अशोक ने राज्य ठुकराया !
बुद्ध के मध्यम मार्ग को ....अपनाया !!
अभी भी कलयुग में ऐसे कई लोग हैं जो अति धन ,
को ठुकराकर साधु संत की शरण में आते हैं ।
अतः मन के मुताबिक किस को मिल पायः
शायद यही परमात्मा की अद्भुत ...माया है !