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Kusum Lakhera

Inspirational

4.5  

Kusum Lakhera

Inspirational

मनोवांछित

मनोवांछित

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270


कब किसको मिल पाया है 

मन के अनुकूल ..

मन का हुआ तो अच्छा हुआ !

स्वप्न जिंदगी का सच्चा हुआ !!

पर यथार्थ के धरातल पर ..

कुछ ही लोग होते हैं ऐसे जो

शायद ...राजयोग ..

लिखवा क़े आते हैं !

धनलक्ष्मी सोने की क़लम से लिखती है..

उनका भाग्य ..जो सौभाग्य को जन्म से ,

ही लेकर आते साथ ..

चाँदी के चम्मच से बचपन से ही खेलते हैं !

सुख सुविधा के मखमली गलीचों पर रखते पाँव !

ऐश्वर्य के सभी साधनों की होती है छाँव !

क्या ऐसे सम्पन्न लोग ही तो मनोवांछित पाते हैं ?

पर इनसे नहीं होती क्रांति ..

न कोई परिवर्तन न कोई बदलाव 

क्योंकि साधनों की बहुलता इंसान को स्वार्थी में 

बदल देती है !

या अति दार्शनिक व संत में परिवर्तित कर देती है !

क्योंकि अति किसी भी चीज़ की सही नहीं होती !

अति धन , अति यश , अति शक्ति अति रूप अति ,

ज्ञान का चरमोत्कर्ष सुख या आनन्द की पराकाष्ठा 

नहीं होती !

अति सुख ...सिदार्थ को कहाँ रास आया !

महल त्यागा ..परिवार त्यागा , बौद्ध धर्म को गले लगाया !

अति रक्तपात के कारण महान अशोक ने राज्य ठुकराया !

बुद्ध के मध्यम मार्ग को ....अपनाया !!

अभी भी कलयुग में ऐसे कई लोग हैं जो अति धन ,

को ठुकराकर साधु संत की शरण में आते हैं ।

अतः मन के मुताबिक किस को मिल पायः

शायद यही परमात्मा की अद्भुत ...माया है !



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