संघर्ष ....
संघर्ष ....
संघर्ष की बेला आख़िर कब तक ...
ये नैराश्य ये अंधेरा आख़िर कब तक ...
वह सूर्य आशा की किरणों को लाता क्यों नहीं ..
वह बासन्ती पवन मल्हार गाता क्यों नहीं ...
वह सरिता पावनता की प्रतिमूर्ति नज़र क्यों न आए
आज दस दिशाओं में उदासीनता क्यों है छाए ...
मन के कारागार में ...सारे ख़्वाब प्यारे ..
काश कोई चमत्कार निराला .... ऐसा होता !
इस संघर्ष की बेला को प्रकाशित कर वो देता !!
और जीवन को इंद्रधनुषी खुशियों के रंग से भर देता !