रेड लाइट एरिया की दास्ताँ
रेड लाइट एरिया की दास्ताँ
स्याही न जाने क्यों, उस पन्ने की तलाश में है।
कफ़न मिला है जिस्म को, या उसी लिबास में है।
आज फिर किसी की चीख़ फ़लक से टकराई है,
यूँ ही तो नहीं टूट कर बिजली ज़मीन पे आयी है।
शरीफ़ों के शहर के बीच, एक छोटा सा मकाम है,
इन्हीं शरीफ़ों की वजह से, ये गलियाँ बदनाम है।
रात की तारीकी में, मुँह छुपा कर आते हैं,
दौलत की नुमाईश पे , हवस का खेल रचाते हैं।
कभी ग़रीबी तो कभी बेबसी का नाम देकर छोड़ा,
हैवानियत के दरिंदो ने, मासूमियत को निचोड़ा।
कौन आवाज़ उठाये, हर किसी को इज़्ज़त प्यारी है,
जानते हैं सब, दुनिया के पहली और आख़री महामारी है।
इतिहास जब भी सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा,
एक बदनुमा दाग़ बन रेड लाइट एरिया का नाम आएगा।
