जल ही अमृत है
जल ही अमृत है
जल से ही जीवन है, जल ही जीवन है।
समर्पण कर दूँ कुछ भी तुझसे ही अर्पण है।
जीवाश्म जब बना तो जल का ही था रूप,
उसकी हर साँस में बनता गया स्वरूप।
समंदर के मंथन से मिला अमृत का प्याला,
जल ही का था वास, जिसने किया उजाला।
कोका कोला, ठंडा चाहे जितना भी लिया जाए,
सच पूछो तो प्यास तो सिर्फ पानी ही बुझाए।
सूरज की अग्नि से भी भाप बन, करें बरसात,
शबनम की बूंद में देखो , देती ज़िन्दगी की आस।
ग्रह पे जो मिले पानी का ज़रा भी वास,
मानव जगत बनाने लगे अपना ही निवास।
क़ीमत पानी की गर यूँ समझ न आये,
एक दिन प्यासे रह कर देख, ख़ुद समझ जाए।
प्रकृति हो या कृत्रिम दोनों का एक ही स्थान,
जल ही अमृत, जल ही स्वयं एक पहचान।