जिन्दगी की जंग नहीं हारे पर
जिन्दगी की जंग नहीं हारे पर
जिन्दगी की जंग
नहीं हारे पर
अपनों से जंग
हार गये
थोड़ा कम है पर
गम तो आखिर
फिर गम है
चेहरे पर चमक नहीं
आवाज में दर्द नहीं
लबों पे मुस्कुराहट नहीं
आंखों में आंसू नहीं
मन में है घुटन
दिल में खामोशी
जख्म भरे हुए
फूलों से लहलहा रहे
एक कोने में
चुपचाप कहीं पड़े
किसी से
कुछ न मांग रहे
किसी प्रश्न का
न कोई अब उत्तर है
जीने की न कोई
हसरत
न मौत के इंतजार में
दिल सहम के हुआ पत्थर है
जो पौधा अपने हाथों से
रोपा वही फल नहीं दे रहा
सारे संसार में
बांट रहा अमृत
अपने दिल के टुकड़ों को तो
बस भर भर विष के प्याले
पिला रहा
पल पल उन्हें ला रहा
मौत के करीब
उनकी जिन्दगी उनसे
छीन रहा
कुछ ऐसे जैसे
वह अपनी ही जिन्दगी
अपने मुताबिक
जीने के
कभी हकदार थे ही नहीं।
