STORYMIRROR

Vibha Rani Shrivastava

Tragedy

4  

Vibha Rani Shrivastava

Tragedy

चिन्ता

चिन्ता

1 min
322

होड़ लगी है कितना का कितना हसोत लें।

छल-बल से मेढ़ खा सारा का सारा जोत लें।

जो संग जाता दुनिया को गठरी में बाँध लेते,

परवरिश भुला संस्कार पर कालिख पोत लें।

डर सताता रहता हमसे हमारा सब छीन ले जायेगा कोई।

पल-पल बदलती दुनिया में कितना साथ निभायेंगा कोई।

हमारी कोशिश उतना ही दोष दे लेते जितना हमें दंश देते,

भयावह नहीं ना जो चाहेंगे हम कितना हमें सतायेगा कोई

शिल्पकार गुरु आँखों में सपने भरे

शब्दकोश लेखनी गति तेज करे

भरपूर जीवन जीने के बाद

उम्र होने पर अपने जनक को

थोड़ा-थोड़ा गुजरते देखना कष्टप्रद था।

पुनः उसी मनोस्थिति से गुजर रही हूँ

मेरे साहित्यिक गुरु थोड़ा-थोड़ा गुजर रहे हैं।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy