'माँ की चिन्ता'
'माँ की चिन्ता'
हमें क्या पसन्द हमें क्या अच्छा लगता है
इससे आगे तुम्हारा दायरा कहाँ बढ़ता है ?
माँ ! हम बड़े हो गए हैं तुम कब समझोगी !
"अरे मेरी उम्र नहीं थम रही क्या तुम बुझोगी ?"
"तुम्हारी बेवजह की चिन्ता हमें खिंजाती है !"
"वयस्क होने पर अलग कर लेना दिनाती है।
डर सताता रहता तुमसे तुम्हारा सब छीन ले जायेगा कोई।
पल-पल बदलती दुनिया में कितना साथ निभायेंगा कोई।
विध्वंसक है, आँखें कुछ कहती हैं,
जुबान से कही बातें सार्थक जब नहीं होती हैं।"