STORYMIRROR

Praveen Gola

Romance Tragedy

4  

Praveen Gola

Romance Tragedy

तुम कितनी अच्छी हो

तुम कितनी अच्छी हो

1 min
18

तुम कितनी अच्छी हो ,

सुनने को तरस गये थे कर्ण ,

सत्ताइस सालों से ....

कोई अच्छाई तब नज़र ,

आती ही नहीं थी उन्हे ,

मेरे अस्तित्व के ख्यालों में |


मैं दिन रात खटती रही ,

फिर भी सुनती रही ,

ताने और गालियाँ ,

वो रोज़ मुझ पर तंज कस ,

अपनी मर्दानगी से ,

करते रहे शैतानियाँ |


मेरा रोम - रोम ,

छलनी होता रहा ,

मैंने तब भी उफ़ ना की ,

तुम कितनी अच्छी हो ,

ये शब्द सुनने की ,

कभी उनसे ज़िद ना की |


उनका प्यार मेरे लिए ,

झूठा या सच्चा ....

मुझे पता नहीं ,

मैं भोली हर बात मान ,

उनके सपनो को ,

पूरा करने में लगी |


फिर एक दिन ,

वक़्त ऐसा आया ,

जुदा होकर दिल घबराया ,

उस वक़्त मेरी कीमत का ,

शायद उन्होंने खुद से ....

अंदाजा लगाया |


तुम कितनी अच्छी हो ,

पहली बार .....

ये शब्द लिख भेजे ,

मैं बेचैन सी होकर ,

कितनी बार लेती ,

उन शब्दों के फेरे |


प्यार में विरह भी ,

होता कितनी जरूरी ,

ये जान लो यारा ,

वरना साथ चलते चलते ,

कभी ना मिलेगा ,

ऐसा एहसास प्यारा ||



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance