कच्चे धागे
कच्चे धागे
कच्चे धागों से बंधी , मानव मन की डोर !
ठसक लगे ,टूट जाए ,इतनी कच्ची डोर !
बंध जाए ,ह्रदय के धागों से,हो जाए मजबूत !
स्वार्थ, छल,दंभ करते इसकी नींव कमजोर !
रक्त के रिश्तों को ,आज झुठला रहे हैं ,
जब जुड़ी, प्रियतमा संग, नव प्रेम की डोर !
इक डोर से बंधे , दूजी डोर छूट जाएं ,
आज जमाने की झूठी, कच्ची है ,यह डोर !
कहते ,रिश्ते खून के टूटे नहीं ,कैसे भी यार!
रिश्ते अब कुम्भला रहे ,ये कैसी चली बयार?
दूर से ही ,सब भले , मन का ओर न छोर ,
चुभन लिए बैठे ,कंटक से गुथी ये कैसी डोर !
गैर के ,रिश्तों को देख हर्षाते ! बहुत
मन से कैसे गहरे जुड़े ? नाजुक सी ये डोर !
बेपरवाह मन से जुड़ी ,मतलब की यह डोर !
हो मन उदास सोचता !रिश्तों की ये कैसी ?''कच्ची डोर !''
