STORYMIRROR

Laxmi Tyagi

Tragedy Inspirational

4  

Laxmi Tyagi

Tragedy Inspirational

कच्चे धागे

कच्चे धागे

1 min
13

कच्चे धागों से बंधी , मानव मन की डोर !


ठसक लगे ,टूट जाए ,इतनी कच्ची डोर !


बंध जाए ,ह्रदय के धागों से,हो जाए मजबूत !


स्वार्थ, छल,दंभ करते इसकी नींव कमजोर !


रक्त के रिश्तों को ,आज झुठला रहे हैं ,


जब जुड़ी, प्रियतमा संग, नव प्रेम की डोर !


इक डोर से बंधे , दूजी डोर छूट जाएं ,


आज जमाने की झूठी, कच्ची है ,यह डोर !



कहते ,रिश्ते खून के टूटे नहीं ,कैसे भी यार!


रिश्ते अब कुम्भला रहे ,ये कैसी चली बयार?


दूर से ही ,सब भले , मन का ओर न छोर ,


चुभन लिए बैठे ,कंटक से गुथी ये कैसी डोर !




 गैर के ,रिश्तों को देख हर्षाते ! बहुत 


 मन से कैसे गहरे जुड़े ? नाजुक सी ये डोर !


बेपरवाह मन से जुड़ी ,मतलब की यह डोर !


हो मन उदास सोचता !रिश्तों की ये कैसी ?''कच्ची डोर !''


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy