सुन री, पतंग!
सुन री, पतंग!
सुन री, पतंग ! तू गगन को चूमना।
स्वच्छंद हो ,वायु संग अंबर में झूमना।
तोड़ बंधन ,सभी यहाँ -वहां न घूमना।
मेरी रंग- बिरंगी ,प्यारी सतरंगी पतंग !
जिसकी डोर, मेरे इन हाथों बंधी।
कट जाएगी, ग़र लापरवाही करी।
संभालकर, धैर्य से, उसे उड़ाना है।
उद्देश्य तुझे गगन तक पहुंचाना है।
स्वतंत्र नील गगन में, पहचान हो तेरी।
उड़े लटकन संग, पतंग है, अलबेली !
बीच राह में , कही भटक मत जाना।
जीत कर तुझे यहीं, वापस है ,आना।
जब दे कोई, अपना [डोर ]दगा,
समझना ज़िंदगी एक ''जंग'' है।
ये काटा ,वो काटा से गूंजे गगन !
दे दे ताली, नाचे -झूमें होके मग्न।
ऐ पतंग ! तुझे जीत कर है ,आना।
आज तुझे पवन को है , आजमाना।
'मकर संक्रान्ति' का पर्व है ,सुहाना।
हर्षोउल्लास में, धैर्य ! न डगमगाना।
