जीवन मायाजाल
जीवन मायाजाल
कनक मुद्रिका देख, मन ललचाया जाए।
तराशा उसे इस तरह, मुंह से निकले हाय !
ऊपर कुंदन की चमक, नीचे विषैला नाग है।
मन के भाव उमड़े ,देख ! कुछ कहा न जाये।
आकर्षण कुछ ऐसा, मनोहर! कैसा ये पाश है ?
बाहरी आकर्षण में उलझा, समझा न ये छल है।
माया का यह जाल कैसा? छुपा विषधर नाग है।
आकर्षण से परिपूर्ण, जीवन सा उजला साज़ है।
जीवन सी पिटारी में बंद , आकर्षण बहुतेरे हैं।
मोह -माया, छल ,लोभ, जैसे जग में फैले नाग हैं।
चमक !इस जग की, जिसमें उलझा यह संसार है।
फूल हैं ,यदि जीवन में , तो काँटों का भी साथ है।