ये हाथ!
ये हाथ!
इन हाथों ने, बड़े पुण्य कमाए हैं ,
भले ही, चिकने नहीं, भूखे को भोग लगाए हैं।
वक़्त पर ,हमेशा काम आये ,
ग़ैर की मदद के लिए, ये हाथ ही आगे आये हैं।
ठंडी हो या गर्मी,कष्ट सहा बहुत ,
इन हाथों ने, गेहूं को आटा बना, रोटी पकाए हैं।
ये कभी, मेहंदी के बूटों से सजे रहते थे ,
आज, हाथों में हल्दी-मसाले की खुशबू समाये है।
बचपन में ,इन हाथों ने पकड़ी थी ,क़लम !
इन हाथों ने ही ,जीवन में ज्ञान के दीप जलाए हैं।
कंपकंपाते ,नग्न तन को देख ,
भरी ठंडक में ,इन हाथों ने ही ,वस्त्र ओढ़ाए हैं।
''नेल आर्ट'' किया नहीं, न ही किया, मेनीक्योर !
बच्चों की फरमाइश पर, पकवान विभिन्न बनाएं हैं।
सिली नहीं कभी, हाथों की दरारें !
उधड़े , टूटे, बिखरे रिश्ते ही नहीं, वस्त्र सिल पहनाए हैं।
कभी मिष्ठान, कभी बड़ी, कभी मुरब्बा हो या अचार!
इन हाथों ने, मोहब्बत के विभिन्न रंग सजाये हैं।
आज उन हाथों में, चाकू से कट जाने पर भी,
बहते रक्त की परवाह न कर, बच्चों को गान सुनाए हैं।
सारा दिन, उलझे रहते हैं ,
उलझी, ऊन के धागों से, गोले बना, ऊष्ण वस्त्र पहनाये हैं।
विभिन्न कर्म किये, दे आशीष! छोटों को,
थकन भरे हाथों से, बेपरवाह हो, दर्द अपने छुपाए हैं ।
माना कि उम्र संग परिपक्व हुए , ये भी,
सुंदरता नहीं देखी स्व की ,रोगी को औषधि तुरंत पिलाये हैं।
ह्रदय में भावों में सजे ,रंग कई ,
कहानी हो, या काव्य ,जीवन केभिन्न -भिन्न रूप दिखलाये हैं।
श्रृंगार किया न , बाँधी चोटी, समय पर दी ,भूखे को रोटी !
तनिक चोट से घर में शोर मचाएं ,आज कोमलता ये गंवायें हैं।
