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Laxmi Tyagi

Inspirational Others

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Laxmi Tyagi

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झूठ- सच

झूठ- सच

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सच- झूठ ,का निर्णय कोई कर पाया नहीं । 


क्या सच !और क्या झूठ !समझ पाया नहीं ?


सच लगता केरेले सा, सरलता से पचता नहीं।


इन दोनों को कोई ठीक से आंक पाया नहीं।  


मध्य दोनों के शब्दों और सोच का फासला है। 


झूठ में , सच छुपा बैठा,यह सच की परछाई है। 


एक जमीन तो दूजा...... गगन की रहनुमाई है।


विरोधी दोनों, एक प्रकाश तो दूजा अँधकार है। 




सच, सच्चा तब भी किसी ने अपनाया नहीं । 


झूँठ, फ़रेब को तो यह समझ ही आया नहीं । 


झूठ इमरती सा, फिर भी जा डूबा चाशनी में  


झूठ , नर्म सहजता से समा जाता आँखों में।


 


सच ,एक परत में भी,ठीक दिख पाता नहीं ।


सामने होकर भी, समझ क्यों ?आता नहीं। 


ये ,झूठ के आडंबरों में दबकर रह जाता है। 


सच सा साहस समीप किसी के आता नहीं।




झूठ दुबक -दुबक कर आगे बढ़ता जाता है।


झूठ की तपिश में,इंसा झुलसकर रह जाता है। 


सच का, कठोर धरातल लहूलुहान कर जाता है।


सच का लबादा ओढकर भी झूठ चला आता है। 


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