बचपन की सर्दियाँ
बचपन की सर्दियाँ
बचपन ! ठिठुरन भरी सर्दी से अनजाना था।
ठंडी- गर्मी क्या होती?बचपन इससे बेगाना था।
मां का हृदय, अपने लाल के वास्ते हैरान था।
बचपन, मौसमों की उलझनों से नादान था।
अपना खिलौना साथ ले,अपने पास रखती,
कभी उसके वस्त्र बुनती और बदलती।
कभी अपने आंचल में छुपा,'लेती'गोद में ।
मुस्कुराता बचपन झांकता मां की गोद से।
खिलखिला उठता, नंगे पांव दौड़ लगाता।
मां पीछे दौड़ती, पुकारती-ठंड में न जाना।
>टोपा ओढ़ ले ,मेरे लाल! सर्दी लग जाएगी।
तेरी दादी ,तुझे ,बाहर घूमा कर लायेगी।
निश्चिंत था,मेरा बचपन, परवाह किसे थी ?
सर्दी हो या गर्मी माँ ही मेरी ,मेरे पास थी।
नहीं स्कूल है, जाना,धुंध देख वापस आना।
दोस्तों संग, डींगें हांकना, बातों से इठलाना।
होंठों को गोल कर सिगरेट का धुआं दिखाना।
मुंगफली के छिलकों में' गिरी 'ढूंढकर लाना।
बचपन में सर्दी -गर्मी क्या या फिर हो बरसात !
बचपन का कार्य हर मौसम का लुत्फ़ उठाना ।