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Laxmi Tyagi

Others Children

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Laxmi Tyagi

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लो, आ गया बसंत

लो, आ गया बसंत

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सुनो, सखी ! बसंत बेला आई है। 


हर्षित हो, मन में, खुशियां समाई हैं। 


प्रफुल्लित हृदय में, प्रेमरस समाया। 


प्रकृति का आंचल झूमकर लहराया।


 

धानी चुनर ओढ़ प्रकृति ने ली अंगड़ाई है।


पीत वर्ण,पुष्पों ने प्रकृति कैसी सजाई है ?


पावन धरा...... ! आज सजी इठलाई है। 


आम्र मंजरी ने, डाली -डाली महकाई है।  


नवयौवना सी ये धरा ! आज मुस्कुराई है । 


भ्र्मरों ने स्व गुंजन से प्रेम धुन सुनाई है।  


देखो ! मधुमास में रंगों की बहार आई है। 


वीणा वादिनी की धुन प्रकृति में समाई है। 




पीले चावल और केसर की महक आई है। 


अब शरद ऋतु ने, बसंत को दी बधाई है।


पीत वर्ण धरा से ,शिशिर ने ली विदाई है।


हरित डाल पर बैठ,श्यामा ने कूक सुनाई है।   


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