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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Tragedy Others

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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Tragedy Others

अब वो थकने लगा है..

अब वो थकने लगा है..

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हार गया है वो इस दुनिया से 

अब परेशान हो थकने लगा है 

मजबूत बने रहने की जिद्द में

खुद अपने आंसू पीने लगा है।


कभी भावनाओं के ज्वार में फंसता 

कभी अपनों के कुचक्र में पिसता है 

घुट घुट कर वो रोज मरता 

चलते चलते अब वो रुकने लगा है।।


सफाई देते देते दुनिया को

हार पे हार से थकने लगा है 

असफलताओं के बोझ तले दबकर

तानों से रोज अपनों के मरता है।


ना ख्वाब है ऊंचे ऊंचे उसके 

दायरों में अपने अब रहने लगा है 

अंदर ही अंदर बंट कर वो

अब धीरे धीरे बिखरने लगा है।।


कभी ऊंची उड़ान भरता था वो

अब पग भरने से डरने लगा है 

अपनी जड़ों से कटकर वो

दूर...! दुनिया से होने लगा है।


जिम्मेदारियों को निभाता था बड़ी शिद्दत से 

कांधों पे अपने खुद वो झुकने लगा है 

हसरतें रह गई दिल ही दिल में उसके

सूखे कुंए सा वो दिखने लगा है।।


बहुत कुछ खोया उसने कुछ पाकर

इच्छाओं से अपनी वो डरने लगा है 

वो बोझिल मन चुपचाप अकेले 

अब तन्हा तन्हा रहने लगा है।


कुछ दर्द बाकी था सीने में उसके

कुछ अब...! वो भुलाने लगा है 

किसी को हंसाया खुद को रुलाकर

बस यादों में अपनों के खोने लगा है।।


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