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Vibha Rani Shrivastava

Inspirational

4  

Vibha Rani Shrivastava

Inspirational

'स्वाभिमान'

'स्वाभिमान'

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337


प्यादा की काट

शीशे पर बौछार

तिरछी चाल

लचकती डार नहीं, जो लपलपाने लगूँ।

दीप की लौ नहीं जो तेरे झोंके से थरथराने लगूँ।

लहरें उमंग में होती होंगी

बावला व्याकुल होता होगा,

तेरे सामने पवन ये वो ज्योत्स्ना है,

शीतल, पर... सृजन बाला है।

बला अरि पर बैरी ज्वाला है।

अपने आगमन पर अभिमान मत कर,

हर शै वक्त का निवाला है।

अन्य पर वार करने का कारण बनाओ,

तो बहुत खतरनाक बनाता है..।

वरना सच तो सबका ज़मीर जानता है।

अट्टालिकाओं का, कंक्रीटों का शहर है

हमारे आधुनिकता का परिचायक है।

चुप्पी-सन्नाटों से मरा

अपरिचित अपनों से भरा।

गाँव का घर नहीं

जहाँ केवल नीम का पेड़ होता है पता

युवा बुजुर्गों से गुलजार

अतिथि भी पड़ोसी के अपने होते।

कई बार सबको गुजरना पड़ता है न इस दर्द से

बेटियों का क्या.. कहीं रोपी कहीं उगाई जाती हैं

फूलती फलती वंशो को सहेजती जी लेती हैं।


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