चिन्तन
चिन्तन


राहुल :- कई महीनों से दैनिक इसी रास्ते से गुजरती हो।
एक ही रास्ते, एक ही पेड़-पौधे, एक ही क्यारी!
प्रतिदिन ऐसा क्या देख पाती हो?
जो तुम्हारे चेहरे का हावभाव बदलता रहता है।
कभी शिशु सी मुस्कान खिलती है तो...
कभी वात्सल्य उमड़ जाता है..!
माँ :- क्या तुम्हें सच में एहसास नहीं होता?
नए-नए किसलय निकले दिखलाई नहीं देते...!
पीलापन! न न! पीलापन कहूँ तो
पीलिया का ख्याल आता है।
उफ्फ्! वायरल का शर्त।
क्षतिग्रस्त जिगर हो जाता है।
तुमलोग क्या कहते हो वो येल्लोइश?
वो भी कभी कभी बिखेर देता विभावरीश
राहुल :- अच्छा! कुछ अंग्रेजी के शब्द तुम्हें भी जमने लगे हैं?
अब हमें ना कहना हम अंग
्रेजों संग रमने लगे हैं..!
माँ :– ना! ना, ऐसा बिलकुल नहीं है।
देखो न! एक समान
भूमि, धूप, हवा, पानी मिलने पर
कोई-कोई किसलय होड़ में आगे है...
क्या इसे नहीं पता
ज्यादा ऊँचाई झुकने पर मजबूर करती है।
राहुल :– ओह्ह तुम हमेशा 'लीनिंग टावर ऑफ़ पीसा' याद रखती हो !
माँ :– अरे क्या बात है! चलो इसे इस तरह लो न
पड़ोस के बच्चे का अच्छा ग्रोथ
देखकर दूसरे कुढ़ रहे हैं।
ऊँचे को देखने के लिए
गर्दन ऊँची जो करनी पड़ती है।
राहुल :– जब से ऊँचे दर की महत्ता बढ़ी है,
तब से ऊँचे अहम की नशा चढ़ी है।
माँ :– समय और नियति ने लगाम खिंची और...,
हम प्रकृति के करीब खिंचे आते चले गए..