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Vibha Rani Shrivastava

Tragedy

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Vibha Rani Shrivastava

Tragedy

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शून्य कोई होना नहीं चाहता।

शून्य कोई पाना नहीं चाहता।

जिन्दगी कल थी उन्नीस–बीस,

कल हो जाएगी इक्कीस-बाइस।


लगे हुए हैं सब कोई बेचने में

एस्किमो को आइस।

किसी ने किसी के कहे पर विश्वास किया,

उस किसी के कहे पर अन्य किसी ने विश्वास किया

और उन तिगड़ी की समझाई बातों पर

अन्य कई लोग पथगामनी बनते गए।


किसी बच्चे ने ताश के बावन पतों को

एक पर एक सजा कर ऊँचा और ऊँचा सजा दिया

और एक हल्के से स्पर्श से ढह गया

 विश्वास का गलत निकलना

वही ढहाया गया ताश के पत्ते जैसा हो जाता है

विध्वंस है आँखें कुछ कहती हैं,

निभाये गए कर्म कुछ कहते हैं।


जुबान से कही बातें सार्थक जब नहीं होती है।

छल लेना ज्यादा आसान हो जाता है

या छला जाना ज्यादा आसान है।


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