विभाजन की विभीषिका.!
विभाजन की विभीषिका.!
बंटवारे की कीमत लहू से हमने
कुछ इस तरह चुकाई है
अपने सीने को खंजर से चीर
दो टुकड़ों में आजादी पाई है ।
लाखों लोग कत्ल हो गए
बहन बेटियों की इज्जत गंवाई है
दर दर फिरते बेघर हो गए
नफरत की जो ये आग लगाई है।।
खून के प्यासे अपने ही हो गए
साथ बैठे जिन्होंने रोटी खाई है
जहर इस कदर घुला फ़िज़ा में
कि टीस दिल में उभर आई है।
भाई चारा सब भूल गए अब
स्वार्थ नथुनों में जो घुल आई है
विभाजन की विभीषिका क्रूर हो गई
हिंसा की ऐसी आग लगाई है।।
आंखों से रिसते हैं आंसू
रक्त की बाढ़ सी आई है
क्या अपने क्या पराए यहां
इस विभीषिका में सबने जान गंवाई है।
धूं धूं कर जल उठी आजादी
सफेदपोशों ने ऐसी बिसात बिछाई है
कट मर कर जो शेष बचा
जिंदा लाश बन वो नजर आई है।।
बदल गई पल भर में खुशियां
शोक की लहर जो छाई है
चीख चीख कर माटी भी बोले
इसमें नेताओं की चाल नजर आई है।
देह..! मां भारती की काट कर
वो दो हिस्सों में नजर आई है
दुःखद कहानी इस बंटवारे की
क्या यही सच्ची आजादी हमने पाई है.?
