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मिली साहा

Abstract Tragedy

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मिली साहा

Abstract Tragedy

इस छोटी सी जिंदगी में

इस छोटी सी जिंदगी में

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इस छोटी सी जिंदगी में कितने मंज़र देख लिए,

अपनों ने अपनों की पीठ पर घोपे खंजर देख लिए,


प्यार, विश्वास और जज्बातों का बहाकर खून,

नफरतों के बीज पलते यहां दिलों के अंदर देख लिए,


चेहरे पर लगा है चेहरा अपनों की पहचान कहां,

अपने ही अपनों को रुलाते अश्कों के समंदर देख लिए,


आदर,सम्मान, सत्कार कहीं बंद पड़े हैं तिजोरी में,

टूटते, बिखरते सम्मान के जाने कितने बवंडर देख लिए,


रौंदकर औरों की ख्वाहिशों को खुशियां मनाते यहां,

ओढ़ कर झूठ की चादर बने फिरते कई कलंदर देख लिए,


काटकर गरीबों का गला अमीरों की हुकूमत चलती,

जज्बातों को रौंधते हुए पल में बदलते मुकद्दर देख लिए।


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