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Dippriya Mishra

Abstract Tragedy

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Dippriya Mishra

Abstract Tragedy

मीठा झरना बनने से पूर्व

मीठा झरना बनने से पूर्व

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ऊँचे ऊँचे पर्वतों के

अँधेरी कंदराओं के मन में

जाने कब से 

बेचैनियाँ पल रही थीं

और एक दिन 

भयंकर विस्फोट हुआ

पत्थरों के परखच्चे उड़ गए

कुछ पलों बाद 

कंदरा के बाहर आने लगा

पत्थरों के छोटे बड़े टुकड़े,

रेत, कीचड़... मटमैला जल

ऐसे नीचे फिसलने लगा

जैसे रस्सी थामें ,

कोई पर्वतारोही 

तेजी से उतर रहा हो

देखते ही देखते 

नीर स्वच्छ हो कर

चाँदी सा चमक गया

और कंदरा के भीतर का संघर्ष

मीठे झरने में तबदील हो गया।

हाँ ऐसी ही कुछ बेचैनियाँ

मानव मन की 

कंदराओं में भी पलती रहती हैं

एक विस्फोट जरूरी है

सड़े -गले चुभन देते भावों के 

शवों निकाल फेंकने का

गले तक भरे व्यथा के विष को

बाहर निकालने का

तभी जिंदगी खुल जी जा सकेगी!



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