तुम जा रहे हो
तुम जा रहे हो
तुम जा रहे हो???
मुझे छोड़ कर??
चले जाओ
फिर कभी वापस मत आना
मैं मिलूँगी नहीं फिर तुम्हें
मैं बदल जाऊंगी तब तक,
यहीं खड़े तुम्हारे इंतज़ार में
जहाँ तुम मुझे छोड़े जा रहे हो
जब जाओ तो मुझे मत सोचना
वापस आओ तो मुझे मत खोजना
जैसे तुमने जिए हैं कितने बसंत बिना मेरे
मैंने भी नई कोपलों को तुम्हारे किस्से सुनाए हैं
मेरे हर रंग ने तुम्हें इक उम्र जिया है
मेरे हर अंग ने तुम्हें इक उम्र जिया है
सड़क किनारे गिरे पत्ते जानते हैं तुम्हें
अपने जीवन का औचित्य मानते हैं तुम्हें
तुम छूना मत मुझे अब
मैं जीवित नहीं होना चाहती फिर से
बरसों बिताए मैंने स्वयं के सानिध्य में
तब तो मैं मिली हूँ इस तिमिर से
तुम्हारे सिवा सब थे यहाँ
मैं, तुम्हारी यादें और मेरी वेदनाओं के अवशेष
तुम जीवित रहते हो मुझमें जैसे
तुम्हारा प्रेम, तुम्हारी विरह और मेरा क्षणिक द्वेष
मुझे छोड़ना नहीं आता तुम्हारी तरह
ये खंडहर मुझे अब घर लगता है
प्रेम और घृणा, तुम्हें ज्ञात नहीं पर
करने वालों को एक उमर लगता है
मुझे तुम्हारा साथ अब भाता नहीं
मुझको अब ये सुख भारी लगता है
मुझे मृत्यु चाहिए सूखे पत्तों की तरह
अंत मुझे मुक्ति की तैयारी लगता है
ये मर जाएंगे बिना मेरे
मुझे इन पत्तियों की आदत है
बिखरे हुए हैं मेरे प्रेम में वो
ये मेरे बरसों की चाहत है
मुझे आभास है
तुम्हारी यात्रा में अतीत क्यों है
पर अनभिज्ञ हूँ मैं
तुम्हें अब भी मुझसे प्रीत क्यों है?
तुम्हें ज्ञात नहीं,
तुम गलत गंतव्य पर प्रवाहित हो रहे हो
तुम्हें ज्ञात नहीं
तुम अंत में समाहित हो रहे हो
मेरा सुख है सम्मिलित मेरी वेदना में
वो जीवित है अब बस तुम्हारी कल्पना में
मेरे अस्तित्व से मैं नवीन हो रही हूँ
मैं अपने चरित्र से प्राचीन हो रही हूँ
मैं सोई नहीं हूँ बरसों से
मेरी पलकें आँखों को भारी लगती है
आज एक दरिया बह निकली है हृदय से मेरे
मुझे एक निरंतर नींद की तैयारी लगती है
मेरे व्यक्तित्व का अंतिम परिचय है ये
बसंत छोड़ मैं अब पतझड़ में आ गई हूँ
तुम छूना मत मुझे
इस बार मैं बिखर जाऊँगी
तुम छूना मत मुझे
मैं फिर से निखर जाऊँगी
जाओ तुम
मुझे फिर से छोड़ कर
मुझे बसंत पसंद नहीं
मुझे प्रीत पसंद नहीं
मुझे जीवन पसंद नहीं
मुझे ये गीत पसंद नहीं
तुम छोड़ जाओ मुझे
मुझे खुद को पतझड़ बनाना है
मेरी वेदना रहती है यहाँ
मुझे अब अपने घर जाना है
