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Jyoti Naresh Bhavnani

Abstract

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Jyoti Naresh Bhavnani

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आज भी वही हाल है

आज भी वही हाल है

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सदियों से जो हाल मेरा था,

आज भी वही तो मेरा हाल है।

कितने ही कानून बने पर,

घर में वही पुराना बर्ताव है।


कल तो रहती थी घर में मैं,

घर का ही मुझपर भार था।

नौकरी न थी तब मेरी कोई क्योंकि,

बाहर निकलने पर भी ऐतराज़ था।


करती थी मैं काम पूरा दिन ही,

और बच्चों को संभालती थी।

हर किसी की ज़रूरत का हरदम,

ध्यान बेहद ही मैं रखती थी।


फिर भी घरवालों के दिलों में,

कोई जगह न कभी बना पाई थी।

मेरी भावनाएं और मेहनत कभी भी,

नज़र न किसी को भी आई थी।


आज पढ़ी लिखी हूं मैं बेहद ही,

और दफ्तर में करती काम हूं।

हूं मैं आत्मनिर्भर खुद पर ही,

नहीं किसी की अब गुलाम हूं।


करती हूं मैं काम दिनभर दफ्तर में,

साथ में घर के भी करती काम हूं।

बच्चो को भी पढ़ाती हूं मैं ही,

और सामाजिक रिश्ते भी निभाती हूं।


नहीं करती हूं विश्राम कभी भी,

दिन भर ही चलती रहती हूं।

घर में हर किसी की फरमाइशों का,

ध्यान भी पूरा ही रखती हूं।


फिर भी हरदम हर किसी के,

ताने दिन भर सुनती रहती हूं।

कुछ भी नहीं तो मेरा है घर में,

फिर भी पूरा घर ही संभालती हूं।


अधिकार मिला नहीं है अब तक कोई,

बस फर्ज़ ही हरदम निभाती रहती हूं।

घर के मर्दों द्वारा अब भी हरदम,

मैं ही दबाई और चुप कराई जाती हूं।


कानूनन समानता का अधिकार मिला हो लेकिन,

घर में समान अधिकार न पाने पाई हूं,

हूं तो मैं भी एक इंसान मगर फिर भी,

हमदर्दी के दो बोल भी सुनने न पाई हूं।


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