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ca. Ratan Kumar Agarwala

Abstract Inspirational

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ca. Ratan Kumar Agarwala

Abstract Inspirational

क्षितिज

क्षितिज

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एक क्षितिज हर कोई बनाये बैठा है, सबके अपने हैं सपने,

सबकी अपनी अपनी मंजिल है, सब के हैं अलग ही सपने।

चलते हैं अपने क्षितिज की तलाश में, फंसे हुए रंजिशों में,

बंधकर जिन्दगी के दायरों में, खोजते क्षितिज बंदिशों में।

 

अपनी अपनी राह चुन ली सबने, खोज रहे हैं अपना क्षितिज,

जिन्दगी बीत जाती उलझनों में, फिर भी न मिलता क्षितिज।

बचपन से लेकर आजतक, गुजर गये जीवन के तीन पड़ाव,

क्षितिज की खोज में चलता रहा, खोज ही जिन्दगी का भाव।

 

राह में चलते चलते राही कई मिले, कुछ पल सब साथ चले,

कुछ बिछड़ गये, कुछ बिखर गये, कुछ ज्यादा वक़्त भी चले।

पर क्षितिज अब तक न मिला, अजीब ये जिन्दगी के सिले,

अब तो सता रहा अकेलापन, किस से करूँ जिन्दगी के गिले?

 

बंधे हुए सभी जिम्मेदारियों में, उलझनों के तंग बाज़ारों में,

एक ही धुरी के चक्कर लगाते हैं, फंस कर तंग चौबारों में।

कहते हैं जहां धरा और आसमां मिलते हैं वही है क्षितिज,

कैसे जाऊँ उस अंतिम छोर तक, होती इसी बात की खीझ।

 

देह का मोह बढ़ गया, आध्यात्मिकता से हम हो गये विलग,

क्षितिज तो न मिलेगा, अगर आत्मा न होगी देह से अलग।

सांसारिकता में रह कर, अगर कुछ पल करें आत्मा से बातें,

तब शायद हो जाए,  जीवन में अपने क्षितिज से मुलाकातें।

 

अंतिम क्षितिज तो परमधाम है, करें हम आत्मा की शुद्धि,

छोड़ दें हम काम, क्रोध, लोभ आदि, करें प्रयोग जरा बुद्धि।

सदगुणों का आचमन करते चलें, शायद क्षितिज मिल जाए,

सच्चे मन से भक्ति हो, तो आत्मा परमात्मा एक हो जाए।

 

मानव कल्याण में मन लगाएं, यही हो जीवन का प्रारब्ध,

बुरे कर्मों से दूर रहें, कुछ ऐसा करें क्षितिज पाने का प्रबंध।

एक दूसरे के काम आए, भौतिक जीवन को सुमधुर बनायें,

क्षितिज को पाना है तो, आत्मा संग खुद का मिलन कराएं।

 

एक विश्व हो, एक ब्रह्माण्ड,  मानव जीवन की हो उपलब्धि,

सब मिलकर साथ चलें, तो होगी अवश्य क्षितिज की सिद्धि।

आओ आज लें तन मन से प्रण, दूर करेंगे हम सारे विकार,

परमधाम हो हमारा क्षितिज, सदगुण हो जीवन का आधार।


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