आपकी जाति क्या है?
आपकी जाति क्या है?
कुछ लोग
आज भी
जन्म से जाति के सिद्धांत पर
सीना चौड़ा किए अडिग हैं।
उनसे कुछ सवाल
जिसने सीता का हरण किया
और राम के हाथ मारा गया
किस जाति का था?
जिसने ऋषि जमदग्नि की हत्या की
कामधेनु को चुराया
और परशुराम के हाथों एक हजार भुजाएं कटवा कर मारा गया
वह कौन सी जाति का था
ये लोग किसी जाति के नहीं थे
ये बुरे और दुष्ट लोग थे।
प्रथम दृष्टया एक ही जाति है संसार में
जीव जाति!
फिर उसमें दो उपजातियां हैं
एक भद्र जाति
अर्थात अच्छे लोगों की जाति।
एक अभद्र जाति
अर्थात बुरे लोगों की जाति ।
उसमें भी बुरे लोग कभी भी स्वयं में पश्चाताप, सुधार और परिवर्तन करके
भद्र जाति में शामिल हो सकते हैं।
यह अवसर उनके पास जीवन भर रहता है।
ठीक उसी प्रकार
कभी भी अच्छे लोग अपने कर्मों से पतित हो ,
अधर्म, पाप और अनीति के मार्ग पर चलकर
अभद्र जाति में गिर सकते हैं।
उनके पास भी यह अवसर जीवन भर रहता है।
जाति जन्म से नहीं होती
कर्म से होती है।
यदि अपनी जाति में पैदा हुआ हर व्यक्ति अपनी ही जाति का है।
तो पैदा हुआ हर अपराधी और पापी भी अपनी ही जाति का हुआ ना।
जिनके जीवन मद्यपान और नशे में डूबे
हिंसा की वृत्ति
ईर्ष्या, द्वेष, निंदा में समय बीत रहा है
ज्ञान का अभाव है
किसी सतगुरु की शरण नहीं
लोभ, अहंकार, वासना और क्रोध जिन पर हावी हैं
भ्रष्टाचार, अनाचार, व्यभिचार और दुराचार से जो मलिन हैं।
पापों और अपराधों में जो संलिप्त हैं
वे अभद्र जाति के लोग हैं।
धर्म, न्याय, शांति, अहिंसा, सत्य, संयम, सदाचार जिनके अंतः करण में है।
नीति, परोपकार, दया, करुणा जिनके स्वभाव में है। सत्कर्म, दान और सेवा जिनकी पूजा है।
ज्ञान प्राप्ति जिनके लिए जीवन का प्रथम और अंतिम लक्ष्य है।
संत, महापुरुष और सतगुरु के वचन जिनके लिए दिशा व मार्गदर्शन हैं।
वे भद्र जाति के लोग हैं।
किन्तु
दुष्कर्मी लोगों से भी घृणा नहीं करना है
घृणा व्यक्ति के कर्मों से हो
व्यक्ति से नहीं
तभी तो मिल पाएंगे
उसे भद्र बनने के अवसर।
आशा है
अब जाति में नहीं उलझोगे।
और जाति को पीछे छोड़
सार्वभौम जीव जाति का भी मर्म समझोगे।