जिम्मेदारियों की डोर
जिम्मेदारियों की डोर
जिम्मेदारियों कि डोर पैरों में थी
ख्वाहिशों की पतंगे उड़ने लगी...!
आशाओं कि हवा कुछ इस कदर
चली, जहां थी बस वहीं रह गयीं...!!
आहटों कि आवाज खमोश थी,
चाहतों कि जुबान तेज होने लगी...!
जब बढने लगा चाहत का सिलसिला
तब तक मोहब्बत खतम हो गयीं...!!
हवाओं ने अभी रूख मोड़ा ही था,
कि मौसम की भी राह बदल गयीं...!
कागज क्या जाने की आज एक
कलम रातभर रो रो कर सो गयी...!!
जिम्मेदारी है इसलिए खामोश हूँ,
तु क्या सोचें कि मेरी जुबां खो गयीं...!
बहुत होगें नजारे इस दुनिया में, लेकिन
बस एक बार नजर तुम पर ठहर गयीं...!!
बस वही एक भूल मेरी, मेरी जान ले गयीं...!!!
