ज़िन्दगी से शिकायत
ज़िन्दगी से शिकायत
तुझसे शिकायत है ऐ जिंदगी
क्यों तू इतने उतार-चढ़ाव लाती है
पल में रंगीन तो पल में बेरंग हो जाती है
ऐ जिंदगी तेरा अजीब उसूल है
खुशियों में तो सारा ज़माना साथ रहता है
पर तकलीफ़ में तू हमें क्यों अकेला कर देती है
कुछ तो रहम कर ऐ जिंदगी
ठहर ,थोड़ा तो हमें संभल जाने दे
एक ज़ख़्म भरता नहीं कि तू दूसरा दे देती है
क्यों ख्वाहिशें तू दिल में जगाती है
इन्हीं ख्वाहिशों को पूरा करने के चक्कर में
तू क्यों हमें अपनी ज़िन्दगी जीना भुला देती है
माना जिंदगी में अकेले चलना पड़ता है
तू क्यों किसी को पास लाकर दूर कर देती है
पल भर खुशी देकर जीवन भर का दुख दे देती है
ऐ ज़िन्दगी तू क्यों इतनी उलझी हुई है
जितनी कोशिश करते हैं तुझे समझने की
तू एक पहेली की तरह उतनी ही उलझती जाती है
शिकायतें भी तुझसे ही है
और प्यार भी तुझसे ही है ऐ जिंदगी
क्योंकि हर परिस्थिति में जीना भी तू ही सिखाती है।
