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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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काला सूरज

काला सूरज

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सत्य को अस्वीकार करनेवाला

हर इंसान अंधा नहीं होता


संभव है 

उसका सूरज काला हो

अंधेरे में सब अंधे होते हैं

टटोलना पड़ता है

अनुमान लगाना पड़ता है

महसूस करना पड़ता है


कठिनाई होती अक्सर

अंतर करने में 

रस्सी और सांप में

सही और गलत में

नैसर्गिक और कृत्रिम में


वक्त अब आ गया 

अपना सूरज बदलने का

माकूल रोशनी के लिए


सुना है ब्रह्मांड में लाखों सूरज है

छोटे, बड़े, बहुत बड़े


अंधेरे का सिलसिला अंतहीन

व्यापक और गहन


सूरज भी थकता है, डूबता है

कहते कहते चलते चलते


ज्ञानदीप जलावो सही राह के लिए

जुगनू बन जावो अपने आकाश के लिए


फिक्र मत करो

टेढ़े मेढ़े रास्ते का

ऊँची नीची मुंडेरों का


चाहे दुर्गमय पहाड़ हो 

चाहे तीव्र नदी प्रवाह हो

चाहे तपता रेगिस्तान हो


दृष्टि लक्ष्य पर बनी रहे

इतनी रोशनी बची रहे


प्यासी मछली और भूखा बाज

जब दिखने लगे, मिलने लगे

समझ लेना, मान लेना, जान लेना

आपका सूरज काला सूरज!!


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