मंजिल
मंजिल
हां मैं वहीं हूं जो हर सुबह उठता है!
सूरज की किरणों से पहले जगता हूं!
मन में बस यही ख्याल है आज भी लड़ना है!
जिंदगी की मुसीबत से आज भी जूझना है ।
कभी हार जाऊं इसी का डर रहता है।
लेकिन हर वक्त कोशिश करता ही रहता हूं।
किसी दिन तो मिलेगी जीत यही सोचता रहता हूं।
हर रात को यूं ही निकलता रहता हूं।
मुट्ठी में कुछ सपने लेकर
भर कर जेबों में आशाएं
दिल में है अरमान यही,
कुछ कर जाएं, कुछ कर जाएं।
जब कभी मेरा मन घबराए
कैसी होगी ये मंजिल समझ ना आए
याद करता हूं अपनी उम्मीदों को
उठता हूं और फिर बढ़ता हूं अपने सपनों की और
जिसके लिए खाई है मैंने ठोकरें हजार।
और बढ़ता ही चलता हूं
अपने मंजिल की औ
मंजिल की और..
..
