अन्तसवेदना
अन्तसवेदना
दूर-दूर जब जाते हैं बिछड़ कर अपने
लगता लेकर जैसे उड़ जाते है पंछी सपने
लग जाते हैं बिकने, बारी बारी सपने
अन्तस पीड़ा के ज्वर से लगता है तपने
वेदना तरसती है कही पर छुपने
तपश ही समझा है इसे सबने
जाते-जाते कुछ मौका न दिया तुमने
गम के आंसू, रस से पी लिए हमने
बिछा दी फूलों की सेज हाथों से अपने
बिखेर दिये सब मीठे से सपने
बस पहचान लिया तुम्हे हमने
दूर-दूर जब जाते है बिछड़ कर अपने।